हाथी गजेंद्र की मानसिक जंजीर

"हाथी गजेंद्र की मानसिक जंजीर" कहानी में एक सर्कस के हाथी गजेंद्र और उसके साथी पतली रस्सी से बँधे रहते हैं, लेकिन बचपन से मिले डर के कारण वे उसे तोड़ने की कोशिश नहीं करते। एक बच्चे अर्जुन के सवाल और प्रोत्साहन से गजेंद्र अपने डर को तोड़ता है

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Story Hathi Gajendra mental chain

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"हाथी गजेंद्र की मानसिक जंजीर" कहानी में एक सर्कस के हाथी गजेंद्र और उसके साथी पतली रस्सी से बँधे रहते हैं, लेकिन बचपन से मिले डर के कारण वे उसे तोड़ने की कोशिश नहीं करते। एक बच्चे अर्जुन के सवाल और प्रोत्साहन से गजेंद्र अपने डर को तोड़ता है और आजाद हो जाता है। बाकी हाथी भी उसका अनुसरण करते हैं। यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें अपने डर और मानसिक बंधनों को तोड़ने की हिम्मत करनी चाहिए। (Sircus Ke Hathi Ki Kahani Summary, Hindi Moral Tale)

कहानी: हाथी गजेंद्र की मानसिक जंजीर (The Story: Elephant Gajendra’s Mental Shackles)

कई साल पहले की बात है, एक विशाल सर्कस था जो दूर-दूर तक मशहूर था। उस सर्कस में तरह-तरह के जानवर अपने करतब दिखाकर लोगों का मनोरंजन करते थे। शेर की दहाड़, बंदरों की उछल-कूद और तोतों की नकल, हर चीज़ दर्शकों को हैरान कर देती थी। लेकिन सर्कस का सबसे बड़ा आकर्षण था हाथियों का झुंड। इनमें से एक हाथी, जिसका नाम था गजेंद्र, अपने भारी-भरकम शरीर और चतुराई से लोगों का दिल जीत लेता था।

हर शो में गजेंद्र और उसके चार साथी हाथी—मोती, रानी, भोलू और काली—शानदार करतब दिखाते। कभी वे अपनी सूंड से भारी सामान उठाते, तो कभी एक-दूसरे की पीठ पर चढ़कर पिरामिड बनाते। दर्शक तालियाँ बजाकर उनकी हौसला-अफजाई करते। लेकिन शो खत्म होने के बाद इन ताकतवर हाथियों को एक पतली सी रस्सी से पेड़ के पास बाँध दिया जाता। यह रस्सी इतनी कमजोर थी कि हाथी चाहते तो उसे एक झटके में तोड़ सकते थे। फिर भी, वे चुपचाप बँधे रहते और कभी भागने की कोशिश नहीं करते।

एक दिन सर्कस देखने आए एक नन्हा बच्चा, जिसका नाम था अर्जुन, अपने पिता के साथ वहाँ मौजूद था। अर्जुन ने देखा कि इतने बड़े-बड़े हाथी इतनी पतली रस्सी से बँधे हैं। उसकी उत्सुकता बढ़ी और उसने अपने पिता से कहा, "पापा, ये हाथी इतने ताकतवर हैं, फिर ये इस पतली रस्सी को तोड़कर क्यों नहीं भागते?" पिता को भी यह सवाल दिलचस्प लगा। उन्होंने सर्कस के मालिक, रमेश जी, से यह सवाल पूछ लिया।

Story Hathi Gajendra mental chain
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रमेश जी ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "बेटा, यह बात समझने के लिए हमें इन हाथियों के बचपन में जाना होगा। जब गजेंद्र और उसके साथी छोटे थे, तब हम उन्हें ऐसी ही पतली रस्सी से बाँधते थे। उस वक्त वे इतने छोटे और कमजोर थे कि कितनी भी कोशिश कर लें, रस्सी को तोड़ नहीं पाते। कई बार कोशिश करने के बाद वे हार मान गए। धीरे-धीरे उनके दिमाग में यह बात बैठ गई कि वे इस रस्सी से आजाद नहीं हो सकते। हमने उन्हें यह विश्वास दिला दिया कि वे कभी भी इन रस्सियों को तोड़ने के लिए काफी मजबूत नहीं होंगे।"

रमेश जी ने आगे कहा, "अब ये हाथी बड़े और ताकतवर हो गए हैं। ये चाहें तो एक ही झटके में रस्सी तोड़ सकते हैं, लेकिन उनके दिमाग में वही पुराना डर बैठा है। वे सोचते हैं कि वे आज भी उतने ही कमजोर हैं जितने बचपन में थे। इसीलिए वे कोशिश ही नहीं करते।"

अर्जुन ने आश्चर्य से पूछा, "तो क्या ये हाथी कभी आजाद नहीं होंगे?" रमेश जी ने गहरी साँस लेते हुए कहा, "हाँ, अगर ये अपने डर को तोड़ दें और कोशिश करें, तो ये आसानी से आजाद हो सकते हैं। लेकिन इसके लिए इन्हें अपने मन के बंधन को तोड़ना होगा।"

गजेंद्र की नई शुरुआत (Gajendra’s New Beginning)

यह बात सुनकर अर्जुन के पिता ने कहा, "रमेश जी, क्या हम गजेंद्र को एक मौका दे सकते हैं? उसे यह दिखा सकते हैं कि वह आजाद हो सकता है?" रमेश जी ने सहमति दी। अगले दिन, उन्होंने गजेंद्र को थोड़ा प्रोत्साहित किया। अर्जुन ने गजेंद्र के पास जाकर कहा, "गजेंद्र, तुम बहुत ताकतवर हो। इस रस्सी को तोड़ दो और आजाद हो जाओ!" गजेंद्र ने पहले तो हिचकिचाया, लेकिन अर्जुन की बातों से उसे हिम्मत मिली। उसने अपनी सूंड हिलाई और एक जोरदार झटका दिया। रस्सी पलभर में टूट गई!

गजेंद्र खुशी से चिंघाड़ने लगा। बाकी हाथी भी उसकी हिम्मत देखकर प्रेरित हुए। एक-एक करके मोती, रानी, भोलू और काली ने भी अपनी रस्सियाँ तोड़ दीं। सर्कस के लोग यह देखकर हैरान रह गए। रमेश जी ने कहा, "देखो, इन हाथियों को सिर्फ अपने डर को तोड़ने की ज़रूरत थी। अब ये समझ गए हैं कि वे आजाद हो सकते हैं।" उस दिन के बाद, सर्कस में हाथियों को रस्सी से बाँधने की प्रथा खत्म हो गई। गजेंद्र और उसके साथी खुशी-खुशी सर्कस में करतब दिखाते, लेकिन अब वे अपने मन से आजाद थे। (Hathi Ki Kahani, Freedom Moral Tale)

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 सीख (Moral of the Story)

बच्चों, इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने मन के डर और पुरानी मान्यताओं को तोड़ने की हिम्मत करनी चाहिए। गजेंद्र ने सोचा कि वह रस्सी नहीं तोड़ सकता, लेकिन जब उसने कोशिश की, तो वह आजाद हो गया। हमें भी अपनी सीमाओं को परखते रहना चाहिए और यह विश्वास रखना चाहिए कि हम किसी भी बंधन को तोड़ सकते हैं। सच्ची आजादी तब मिलती है, जब हम अपने डर को हराते हैं और नई शुरुआत करते हैं। (Lesson on Courage, Motivational Story for Kids)

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